तारो की झलार
सखा ये बताओ, रिमझिम से गिरे साथ पलों के फूलों को कैसे समेटे |
एक गिर जाए , तो क्या उठा कर उनको चूमे या माटी की कोहख़ मे मेटे ||
भाव सौम्य, हस्ते हुए मुख को, कैसे कैसे रंगो से रंगोंगी |
सखा, सरस से हरने मेरे हृद्या को पल पल मे कितना हरोगि ||
प्रतिविभ अपनी आकखंचाओं का था या कृष्णा प्रिय के प्रेम प्रयास का |
छू लूँ , सपनो को ओझाल होते देखा है, ससों मे भर लूँ, आहों को आँखों से बहते देखा है ||
अब जो भी है सखा, और चलते हैं दूर साथ, क्षितिज पर बैठ कर देखेंगे हाथो को प्रेम रेखा |||